Kamdhenu Gau Vigyan Prachar Prasar Exam
Rashtriya Kamdhenu Aayog (RKA) has been constituted by the Government of India for the conservation, preservation, protection and development of cows and their progenies and for giving directions for the cattle development programmes. RKA is a high-powered permanent body to formulate policies and to provide directions for the implementation of schemes related to cattle so as to lay more emphasis on livelihood generation for small & marginal farmers, women and youth entrepreneurs.
RKA has been successful in delivering the message across the country that the cow is not just a milk-giving animal but its Environmental, Health and Economic benefits are immense if used properly. Its so-called waste products like cow-dung and cow-urine, which are cheap and abundantly available, are bio-degradable and environmentally friendly. Hence, these can be gainfully used by cow entrepreneurs to make the cow-rearing sustainable, which in turn can contribute towards economic growth of the country. A few campaigns of RKA this year, namely, Gaumaya Ganesha Campaign, Kamdhenu Deepawali Campaign, Kamdhenu Dev Deepawali and a series of seminars and webinars have carried the message of other uses of cow dung and cow urine very effectively.
Establishment of Kamdhenu Chair or Kamdhenu Study Centre or Kamdhenu Research Centre in all colleges and universities across the country has been appreciated by all and it is getting the country-wide momentum.
For raising mass awareness about Indigenous Cows among young Students and every other citizens, RKA has come out with a noble initiative of making Study materials about Cow Science available and conduct “Kamdhenu Gau-Vigyan Prachar-Prasar Examination”. This will infuse the curiosity into all Indians about the cows, and make them aware of the unexplored potential and business opportunities a cow can offer, even after it stops giving milk.
Following are some of the salient points about “Kamdhenu Gau-Vigyan Prachar-Prasar Examination” :
Kamdhenu Gau-Vigyan Prachar-Prasar Exam will be an online exam to be conducted throughout the country on 25th February, 2021. The proposed details for this examination is available on our official website.
http://kamdhenu.gov.in and http:// kamdhenu.blog
The exam will be conducted in four categories
(1) Primary level up to Std 8th
(2) Secondary level (from class 9th to class 12th)
(3) College level (after 12th+)
(4) For the general public.
The Kamdhenu Gau-Vigyan Prachar-Prasar Exam will be of 100 marks and one hour duration in Hindi, English and 12 regional languages.
There is no fee for the examination.
The examination will be tick-mark objective type question-answers (MCQ).
The syllabus as well as other literature and reference books on cows, which is recommended is available on the website of the Rashtriya Kamdhenu Aayog, It will help the examinees prepare for the exam. Blogs, videos and other selected reading material will keep getting uploaded on our official website.
Scientists, entrepreneurs, Gau Sevaks, farmers, youth and women as well as senior citizens will actively work to make this mega event a grand success.
The examination will be conducted in a transparent and impartial manner. Questions will be set in such a way that during the online exam there will be no scope for any maneuvering.
Results will be immediately declared on the website of RKA. Certificates will be given to all.
Successful meritorious candidates will be given prizes and certificates afterwards.
Appreciation letters will be issued to all those who help in organizing this exam.
The Registration Link for this online exam is available on website of Rashtriya Kamdhenu Aayog, which is “kamdhenu.gov.in” / “kamdhenu.blog”.
To make this event a grand success, Union Education Ministers/Chief Ministers/State Education Ministers/Chairmen of GauSevaAayogs of all States/District Education Officers of all States/Principals of all schools/ Print and Electronic Media, NGOs and Cow Donors will be involved in this mammoth exercise.
The Kamdhenu Gau-Vigyan Prachar-Prasar Exam will be an annual event of the Rashtriya Kamdhenu Aayog in future.
For further information relating to Kamdhenu Gau-Vigyan Prachar-Prasar Exam, please visit the website of RKA “kamdhenu.gov.in” / “kamdhenu.blog” and click “EXAM” link there.
It is hoped the KamdhenuGau-Vigyan exam will go a long way in generating interest among and motivation for the common man in rearing the indigenous cow, not only by farmers and Gaupalaks but also by educated youth, women and entrepreneurs, so as to tap its numerous benefits and make it a driver of economic growth of the country. It will also fulfil the objectives of Atmanirbhar Bharat/Vocal for Local/Green India/Digital India/Clean India/Healthy India/Make in India concepts of Hon’ble Prime Minister Shri Narendra Modiji.
VandeGauMataram
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने कामधेनु गौ-विज्ञान प्रचार-प्रसार परीक्षा की घोषणा की
देश भर के सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में कामधेनु चेयर या कामधेनु अध्ययन केन्द्र या कामधेनु अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की सभी ने सराहना की है और इसे पूरे देश में गति मिल रही है। देसी गायों के बारे में युवा छात्रों और प्रत्येक नागरिक में जन जागरूकता बढ़ाने के लिए, राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) गाय विज्ञान के बारे में अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराने और ‘कामधेनु गौ-विज्ञान प्रचार-प्रसार परीक्षा’ आयोजित करने की एक शानदार पहल के साथ आया है। इससे गायों के बारे में सभी भारतीयों में जिज्ञासा बढ़ेगी, और उन्हें एक ऐसी संभावना और व्यवसाय के अवसर से अवगत कराया जा सकेगा जिसके बारे में विस्तार से चर्चा नहीं की गई है, यहां तक कि यदि गाय दूध देना बंद कर देती है।
कामधेनु गौ-विज्ञान प्रचार-प्रसार परीक्षा देश भर में 25 फरवरी, 2021 को देश भर में ऑनलाइन आयोजित की जाएगी। इस परीक्षा के प्रस्तावित विवरण बहुत जल्द इनकी आधिकारिक वेबसाइट पर डाल दी जाएंगी। वेबसाइट है http://kamdhenu.gov.in और http:// kamdhenu.blog.http: // kamdhenu.blog परीक्षा चार श्रेणियों में आयोजित की जाएगी (1) प्राथमिक स्तर से 8वीं कक्षा तक (2) माध्यमिक स्तर (कक्षा 9वीं से कक्षा 12वीं तक) (3) कॉलेज स्तर (12वीं के बाद) (4) आम जनता के लिए।
कामधेनु गौ-विज्ञान प्रचार-प्रसार परीक्षा 100 अंकों की होगी और हिंदी, अंग्रेजी और 12 क्षेत्रीय भाषाओं के लिए एक घंटे की अवधि होगी। परीक्षा के लिए कोई शुल्क नहीं है। परीक्षा टिक-मार्क ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न-उत्तर (एमसीक्यू) होगी। पाठ्यक्रम के साथ-साथ गायों पर अन्य साहित्य और संदर्भ पुस्तकें, जो राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की वेबसाइट पर अनुशंसित की जाएंगी, परीक्षार्थियों की परीक्षा की तैयारी में मदद करेंगी। ब्लॉग, वीडियो और अन्य चयनित पठन सामग्री को आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। वैज्ञानिक, उद्यमी, गौ सेवक, किसान, युवा और महिलाएं और वरिष्ठ नागरिक सक्रिय रूप से इस जबरदस्त कार्यक्रम को एक शानदार सफलता बनाने के लिए काम करेंगे।
परीक्षा पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से आयोजित की जाएगी। प्रश्न इस तरह से सेट किए जाएंगे कि ऑनलाइन परीक्षा के दौरान किसी भी तरह की तिकड़म नहीं चलेगी। परिणाम तुरंत आरकेए की वेबसाइट पर घोषित किया जाएगा। सभी को प्रमाण पत्र दिए जाएंगे। सफल मेधावी उम्मीदवारों को बाद में पुरस्कार भी दिए जाएंगे। इस परीक्षा के आयोजन में मदद करने वाले सभी लोगों को प्रशंसा पत्र जारी किए जाएंगे।
इस ऑनलाइन परीक्षा के लिए पंजीकरण लिंक राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध होगा, जो kamdhenu.gov.in” / “kamdhenu.blog’ है। इस आयोजन को एक शानदार सफलता बनाने के लिए, केन्द्रीय शिक्षा मंत्रियों / मुख्यमंत्रियों / राज्य के शिक्षा मंत्रियों/सभी राज्यों/जिलों के गौ सेवा आयोगों के अध्यक्ष, सभी राज्यों के शिक्षा अधिकारी/ सभी स्कूलों के प्रधानाचार्य/प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, गैर सरकारी संगठन और गौ दानकर्ता इस जबरदस्त कार्यक्रम में शामिल होंगे। कामधेनु गौ-विज्ञान प्रचार-प्रसार परीक्षा भविष्य में राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का वार्षिक आयोजन बन जाएगा। यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत/ वोकल फॉर लोकल/ग्रीन इंडिया/डिजिटल इंडिया/स्वच्छ भारत/स्वस्थ भारत/मेक इन इंडिया के उद्देश्यों को भी पूरा करेगा। कामधेनु गौ-विज्ञान प्रचार-प्रसार परीक्षा से संबंधित अधिक जानकारी के लिए, आरकेए की वेबसाइट ‘kamdhenu.gov.in’/ ‘kamdhenu पर जाएं।
आरकेए देश-भर में यह संदेश देने में सफल रहा है कि गाय सिर्फ दूध देने वाला पशु नहीं है, बल्कि इसके पर्यावरण, स्वास्थ्य और आर्थिक फायदे बहुत हैं यदि इसका ठीक तरह से उपयोग किया जाए। इसके तथाकथित अपशिष्ट उत्पाद जैसे गाय-गोबर और गौमूत्र, जो सस्ते और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, स्वाभाविक तरीके से सडऩशील और पर्यावरण के अनुकूल हैं। इसलिए, गाय पालन को टिकाऊ बनाने के लिए गाय उद्यमियों द्वारा इनका लाभ उठाया जा सकता है, जो बदले में देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान कर सकते हैं। इस वर्ष आरकेए के कुछ अभियानों, अर्थात्, गौमाया गणेश अभियान, कामधेनु दीपावली अभियान, कामधेनु देव दीपावली और सेमिनारों और वेबिनारों की एक श्रृंखला ने गाय के गोबर और गोमूत्र के अन्य उपयोगों का संदेश बहुत प्रभावी ढंग से दिया है।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) का गठन भारत सरकार द्वारा गायों और उनकी संतानों के संरक्षण, उनके पालन, सुरक्षा और विकास के लिए और पशु विकास कार्यक्रमों के लिए दिशा निर्देश देने के लिए किया गया है। आरकेए नीतियों को तैयार करने और मवेशियों से संबंधित योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए एक उच्च अधिकार प्राप्त स्थायी निकाय है ताकि छोटे और सीमांत किसानों, महिलाओं और युवा उद्यमियों के लिए आजीविका उत्पादन पर अधिक जोर दिया जा सके।
AP Govt to launch mission “Punganur” to protect local breed of cow
Andhra Pradesh government has sanctioned Rs 70 crore for advanced research on the famed Punganur dwarf cow breed. The native virgin Punganur breed cattle became almost an endangered breed. The AP government is planning to launch Mission Punganur. Chief Minister Y S Jagan Mohan Reddy also directed the officials concerned to take necessary steps to protect the native breed including Punganur and Ongole cattle breed.Punganur Cow (Cattle) is the World’s smallest Bos indicus cattle originated in Punganur town in Chittoor district of Andhra Pradesh, India. This breed is known for its short stature, high milk production efficiency and efficient reproductive characters. In Ancient Ayurvedic scriptures such as Charaka Samhita, Shushruta Samhita and Brahad-Wagbhatt mention various medicinal properties of cow urine. It is used as an insecticide and in disorders like intestinal gas, acidity, and cough.This particular cow breed is known for its high fat content and rich medicinal properties.It has a high milk fat content of 7-9%. It also has several health improving properties and it helps infants gain better immunity .The lactation milk yield is approximately 540 litres and lactation length is 260 days.The average milk fat content is 5 to 8 % and their average daily feed intake is 5 kg.The bulls are more docile than the females .It is widely known as an efficient milch breed.The Centre for Advanced Research on Livestock Ltd at Pulivendula in Kadapa district submitted a detailed 5 year project report for conservation of Punganur cattle under ‘Mission Punganur’ research project by utilising IVF Technology for genetic up gradation.The government said the Mission Punganur project is aimed at not only protecting the breed but also ensure its rapid multiplication through in vivo and in vitro embryo production. Efforts will be made to use low genetic cows as surrogates and produce more offspring.Efforts are being made to replicate the breed’s characteristics and develop them in a regular cow breed under this project.This breed is on the verge of extinction. The decline of this pure Indian breed is mainly due to an earlier policy decision taken by the Government to “better” Indian cattle breeds by cross-breeding the Punganur with the Holstein-Friesian and Jersey cattle while banning the rearing of native bull breeds.Available only in small numbers, the Punganur cow has become a craze, a status symbol, among the wealthy in the Andhra Pradesh capital of late.The Punganur cattle are now being reared mainly on the Government Livestock Farm, Palamaner, Chittoor district, while a small informal group of private breeders are also working on reviving this revered species.
Punganur dwarf cattle which originated from the Chitoor District of Andhra Pradesh in southern India is among the world’s smallest humped cattle breeds.The Punganur breed’s milk has a high fat content. While cow milk normally has a fat content of 3 to 3.5 per cent, the Punganur breed’s milk contains 8 per cent.The breed is named after the town of its origin, Punganur, in Chittoor district situated in the south-eastern tip of the Deccan Plateau. Animals are white and light grey in colour with a broad forehead and short horns. Its average height is 70–90 cm and its weight is 115–200 kg. The cow has an average milk yield of 3 to 5 litres/day and has a daily feed intake of 5 kg. It is highly drought resistant, and able to survive exclusively on dry fodder.
Gau Mata for combating Coronavirus (COVID-19)
Appeal for the preservation of Indian Breed Cows by Donating One Rupee per Month.
सरकार की सहायता से गोसदनों का विकास किया जाए
प्रारंभ से हम सभी गोशालाओं का निर्माण कर गाय सेवा, रक्षा और उससे दूध उत्पादन की ओर ध्यान देते थे और विशेष पर्वो पर उनकी पूजा करते हैं। पर आज राष्ट्र की रक्षा के लिये, गोवंश की रक्षा के लिये, गोसदन की परिकल्पना हमारे धर्माचार्यों और समाजशास्त्रियों ने की। क्योंकि गाय की रक्षा के लिये गोवंश की रक्षा भी आवश्यक है, जो गोसदनों की जा सकती है।
गाय हमारी धार्मिक संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। आज इस अंग को हमारी संस्कृति से काटने का बड़े पैमाने पर षड्यंत्र हो रहा है। परंतु वर्तमान समय में कृत्रिम साधनों और रसायनों को महत्व दिया जा रहा है जिस कारण आज विश्व के सभी देश प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं। अत: अब पर्यावरण के संरक्षण के लिए पूरी तरह से जागरूक हो रहे हैं। हमारे ऋषियों-महर्षियों द्वारा गोसेवा का दिखाया गया मार्ग मात्र कपोल कल्पित परंपरा थी बल्कि आज के वैज्ञानिक भी उस गोसेवा को स्वीकार करने लगे हैं।
संसार का पहला ज्ञानग्रंथ वेद है। ‘गावा विश्वस्य: मातर:’ कहकर उसकी महिमा गायी हुई है। मां के बाद किसी दूध की महिमा है, तो वह गाय का ही दूध है। गाय सभी को पोषण देती है, किसी को विकृति नहीं देती। जो समाज गाय का सम्मान नहीं कर पाए, वह कृतध्नी है अत: उसकी (गोवंश) रक्षा, पोषण-संवर्धन करना हमारा उपकार नहीं, नैतिक कर्तव्य है। अत: दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा और गोपाष्टमी 16 नवम्बर 2018 को हमें गऊमाता की पूजा और अर्चना कर गौरक्षण और गोवंश संवद्र्धन का संकल्प लेना चाहिये।
गोवंश संरक्षण का न केवल एक धार्मिक पक्ष है, बल्कि यह आर्थिक, सामाजिक कारणों से भी लाभदायक है और हमें इसकी रक्षा के लिए सर्तक हो जाना चाहिए गोधन कृषि प्रधान भारतीय अर्थव्यवस्था का मूलधार है और इसकी उपयोगिता बहुआयामी है इससे हम स्वावलंबी बन सकते हैं। चौरासी लाख योनियों के प्राणियों में गाय ही एक ऐसा प्राणी है, जिसका मल (गोबर) रोगाणुनाशक व विषाणुनाशक है। इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. जी. ई. बीगेड ने गोबर के अनेक प्रयोग कर यह सिद्ध कर दिया है कि गाय के ताजे गोबर से तपेदिक तथा मलेरिया के रोगाणु मर जाते हैं। अमेरिका के वैज्ञानिक जेम्स मार्टिन ने गाय के गोबर खमीर और समूद्र के पानी को मिलाकर एक ऐसा उत्प्रेरक बनाया है, जिसके प्रयोग से बंजर भूमि हरी-भरी हो जाती है। गोसदन हरेवली की आज हरी-भरी भूमि इसका उदाहरण है।
पुराणों धर्म ग्रंथों में गाय की महिमा गायी है। गंगा, गीता, गोमाता तीनों को मुक्ति दायिनी माना गया है। प्रत्येक भारतीय का विश्वास है हमारे कृषि पर निर्भर है। पर आज हम विदेशी कम्पनीयों और प्रचार के माध्यमों में गाय की उपयोगिता को भूलकर कृत्रिम खादों और रसायनों पर निर्भर हो रहे हैं। आज वही बेचारी गाय दिल्ली की सड़को पर गली-सड़ी वस्तुएं और पोलीथिन को खाकर अपना पेट भर रही है और अनेक बीमारियों का शिकार बन रही है और उनके गोपालक मालिक उनका शोषण कर रहे हैं। वृद्ध होने पर छोड़ देते हैं जिनकी रक्षा गोसदनों में होगी जहां वे अपने गोबर, गोमूत्र से गोसदनों को समृद्धिशाली बना सकती हैं। हम भी गोबर गैस और केंचुआ खाद बना रहे हैं।
आजकल अनेकों गोसदन मानव जीवन को स्वस्थ रखने हेतु गोमूत्र में जड़ी-बूटियां व अनेक धातुओं की भस्में मिलाकर अनेकों औषधियों का निर्माण कर उनकी बिक्री से आमदनी कर रही हैं परंतु शुद्ध गोमूत्र व जड़ी-बूटियों तथा योग्य चिकित्सों के अभाव से तैयार इन औषधियों से कुछ रोगों में मामूली लाभ तो मिला है परंतु वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा है। जिसके लिये सरकार को गोवंश उत्थान अनुसंधान केंद्र बनाने चाहिए। आज सभी जीव-जंतुओं के लिए अनुसंधान केंद्र हैं पर गाय के लिये नहीं है।
गोबर-गोमूत्र से खेती के लिये जैविक खाद व कीटनाशक औषधियां बनाई जायें जिनका उपयोग खेती में करने पर भूमि, जल व वायु शुद्ध होगी, फसलों से उत्पादित अन्न, फल, साग-सब्जियां शुद्ध, पौष्टिक होंगी। सभी नागरिकों को शुद्ध पौष्टिक आहार मिलेगा जिस कारण वे नीरोगी जीवन जी सकेंगे।
गोसदन के गोबर-गोमूत्र का पूरा उपयोग होने पर उसकी बिक्री से गोसदनो की आमदनी बढ़ेगी एवं सभी तरह के गोवंश का पालन तथा रक्षण व संर्वधन भी होगा गोसदनो से ग्रामीण जनता खुशहाल व आत्मनिर्भर भी हो सकेंगी। महंगी जहरीली औषधियों की निर्भरता घटेगी।
गो-पालन एवं गौवंश संवर्धन भारत के लिए समृद्धि का सूचक है। गोवंश की रक्षा, सेवा एवं उपयोगिता के लिये हमें एक सामूहिक दृष्टि पैदा करनी होगी। संयुक्त रूप से हमें गोवंश को देश, समाज एवं हर परिवार के साथ जोडऩा है इसके लिए हम गोसदनों का निर्माण करे, जहां पंचगव्य से हम कुछ निर्माण कर गोसदनों को स्वावलंबी बनाएं। गाय की सुरक्षा संवृद्धि के लिए संगठित प्रयास करें। आईए, आज से ही इस महान यज्ञ में अपनी आहुति डालने के लिए तैयार हों एवं समाज के लोगों को भी इस महान कार्य के लिए जाग्रत कर प्रेरित करें जिससे भारत राष्ट्र स्वावलंबी, संपन्न एवं समृद्धिशाली बने और हम पुण्य के भागीदारी बन सके।
महेश चन्द्र शर्मा
पर्यावरण को अगर बचाना है तो गौमाता का आदर करना सीखो
देशीय पशु से प्राप्त होने वाले गौमूत्र और गोबर किसी भी तरह मलिन नहीं है। ये मलिनता को शुद्ध करने वाले साधन हैं। ये पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले नहीं हैं। ये पर्यावरण में व्याप्त कालुष्य का निवारण करते हैं। ये पर्यावरण के मित्र हैं। कूड़ा, व्यर्थ पदार्थ, पत्ते सब्जियों के छिलके आदि पर गोमूत्र को छिड़कने से मच्छर आदि की उत्पति रूक जाती है। वे सब सड़ कर सेन्द्रिय खाद बनते हैं। इस प्रकार की खाद में 1 प्रतिशत और गैस प्लांट की खाद में 2 प्रतिशत नाइट्रोजन रहता है।
प्राचीन काल के वैभव शिखरों पर अधिष्ठित सभ्यता और संस्कृति के वारिस हैं हम। ऐसे हम विदेशी सरकारों के समय में मात्र शारीरिक रूप से ही नहीं मानसिक धरातल पर भी उनके दास बन गये हैं। वास्तव में यह हमारा दुर्भाग्य ही है। विदेशों में जो विदेशियों के अनुकूल है वही हमारे लिए भी अच्छा है समझ बैठे हैं हम। यह एक भ्रम ही है। इसी भ्रम के जाल में फंसे हैं। स्वतंत्रता के बाद यह जाल और सुदृढ हुआ है। हमारी गौ संपत्ति से संबंधित विचारों में तो यह भ्रम निरूपित हो गया है।
दिल्ली जैसे महानगरों में कांक्रीट, सीमेंट, मार्बल जैसी मूल्यवान सामग्री से साफ-सुथरी कॉलोनियां बन गयी हैं। उनमें हर परिवार के पास किसी न किसी प्रकार का मोटर वाहन अवश्य है। उसे रखने के लिए गैटेज भी बहुत से घरों के साथ हैं। पश्चिमी देशों के अनुसरण में अवश्य कुत्ते पालते हैं। लेकिन गौमाता को पालने की व्यवस्था कहीं नहीं है। आश्चर्य की बात है कि कालुष्य को व्याप्त करने वाले वाहन तो सब को चाहिए। कितनी भी गंदगी फैलायें, कुत्ता अवश्य चाहिए। ये ही आधुनिक जीवन के प्रतिमान बन गये हैं। लेकिन गौमाता का आदर करना कोई नहीं चाहता। हमें अपनी सोच बदलनी है। पर्यावरण की रक्षा में समर्थ गायों की सुरक्षा का भार अपनाना चाहिए। उन्नत वर्गों के पास प्रान्तों में गौ संरक्षण की व्यवस्था होती है तो पर्यावरण का कालुष्य अवश्य कम होता है। काबू में रहता है। गोबर पर पड़ी किरणों के प्रवेश से दुष्प्रभाव दूर होता है। इस का निरूपण भी हो चुका है। इसीलिए हमारे घरों के पास ऐसी व्यवस्ता का आयोजन होना जरूरी है। गौमय से लीपा-पोती की व्यवस्था, खास करके घर के प्रांगण में, अधिक लाभकारी सिद्ध होगी।
आजकल एक और वाद प्रतिध्वनित हो रहा है। क्या हर व्यक्ति को और हर परिवार के लिए गौ-पोषण करना संभव है? आज परिवार अलग-अलग हैं। एकल परिवार अधिक हैं। संयुक्त परिवार नहीं के बराबर हैं। सब अपने-अपने कामोंं में व्यस्त हैं। खासकर यह शहरों में ज्यादा हैं। सामूहिक सामाजिक जीवन को आज लगभग भूल गये हैं। आधुनिक जीवन अर्थ प्रधान हैं। पैसा ही परमात्मा हैं। अगर एक परिवार नहीं तो चार परिवार मिलकर दस गायों की पोषण व्यवस्था कर सकते हैं। उससे अच्छा दूध मिल सकता है। दूध के साथ घी, दही आदि प्राप्त होते हैं। इन से अपने-अपने परिवार वालों की तंदुरूस्ती ठीक रख सकते हैं। आनंद पा सकते हैं। इसके साथ-साथ अपने आसपास पश्चिमी देशों में भी सामूहिक जीवन के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। लेकिन यहां पर तो हम पड़ोसियों से भी मिलने का प्रयास नहीं करते हैं। इस कारण चोरियां बढ़ रही हैं। हत्याएं और धावा बोलना जैसी घटनाएं आज हर दिन की घटनाएं हो रही हैं।
गायों को पालने वाली जगहों को खासकर कॉलोनियों से दूर रखना आत्महत्या सदृश है। गोबर और गोमूत्र को गो-मल समझने के कारण यह सब हो रहा है। प्रधानत: उजले कपड़े पहनने वालों की यह भावना है। इसीलिए गायों को जनावासों से दूर रखा जा रहा है इसका एक कारण पाश्चात्य प्रभाव हो सकता है। शहरी लोगों को अपनी समर्पित भावना से मुक्त होना है। यह अत्यंत लाभप्रद है। इस दिशा में सोचना आज आवश्यक है।
गोमय और गोमूत्र को सेन्द्रिय खाद के रूप में कीटक नाशिनी के रूप में देखने में विज्ञता है। इस ओर हमें बढऩा है। समझना है कि इस से प्रजा को विषरहित और सुरूचिपूर्ण धान्य और उससे आहार मिलेगा। गांवों में कुछ परिमाण में उपलों का विनियोग होने पर भी अधिक खाद के रूप में उपयोग में है। वैसे तो उपलों के उपयोग से पेड़ों का काटना कम होता है। इनसे वृक्षों की रक्षा और वनों का विस्तार होता है। अधिक संख्या में पेड़ पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक हैं। हमारे देश में चेरापूंजी प्रांत में वर्षा अधिक होती है। वहां पर भी पेड़ों को काटने से वहां के क्षेत्र भी ऊसर क्षेत्र बनते जा रहे हैं। चेरापूंजी प्रान्त का सम्मान आज घटता जा रहा है।
देश में गौशालाओं और गौसदनों की स्थापना के साथ-साथ वृक्षारोपण(पेड़ों को लगाना) का कार्य भी आवश्यक है। देशी गायों की संतति को बढ़ाना है। गोबर के लिए गोचर विस्तार करना है। पेड़ों के विस्तार से”ओजोन’’ में रंध्र नहीं होंगे। ‘ओजोन’ पृथ्वी की रक्षा करता है। ‘ओजोन’ में पडऩे वाले छेदों से आज दुनिया भयभीत है।
‘ग्लोबलाइजेशन’ और स्वेच्छा व्यापार से संबंधित सन 1991 का एक नया विधान हमारे देश में 100 प्रतिशत मांस निर्यात को लक्ष्य में रख कर पशुवध यंत्रों और पशुवध शालाओं को प्रोत्साहित करने की दिशा में है। हम आगे बढ़ रहे हैं। इससे विश्व व्यापार संस्था को कम दामों में मांस मिलता है और वहां के उद्योगों द्वारा उससे अधिक लाभ वे पाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो यूरोपीय उद्योग व्यवस्था को यह अधिक बल देने वाला ही होता है। यही हमारी भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंश जीने और काम करने के हक को और ऐसी भावना को ठेस पहुंचाता है। हमारा वाद ‘जिओ और जीने दो’ वाला वाद है। वाणिज्य के शुल्क वसूल करने के संबन्ध में एक समझौता हुआ है। उसके नियमों में 11वां अधिनियम कहता है कि आयात-निर्यातों पर किसी प्रकार की पाबंदियां रखना न्यायोचित नहीं है। सांस्कृतिक, आर्थिक तथा पर्यावरण के संबन्ध में आवश्यक होने पर भी किसी प्रकार की पाबंदी इसके आधीन कोई भी देश कर नहीं सकता। यही उस नियम की परिभाषा है।
केन्द्र और प्रांतीय सरकारों की सरकारी शाखाएं पशु वधशालाओं की स्थापना के लिए सरकारी ग्रांट और अनेक प्रकार की सुविधाएं (आर्थिक भी) प्रदान कर सकती हैं। केन्द्र पर्यावरण शाखा के सन 1996 वर्ष के एक प्रतिवेदन के अनुसार पिछले पांच वर्षों में कम से कम 32,000 पशु वधशालाएं अधिकार-अनाधिकार स्रोतों से निर्मित हुई हैं। उससे पहले अधिकार पूर्वक कानूनन बनी पशु वधशालाएं केवल 3,600 थीं। ये भी अनुमान के अनुसार वास्तव से कम भी हो सकती हैं। सन 1975 के कुल मांस निर्यात 6,195 टन था। लेकिन सन 1995 तक मानी 20 वर्षों में निर्यात 1,37,334 टन तक पहुंच गया। अर्थात 20 गुना बढ़ गया है। गायों और भैंसों के मांस का निर्यात 1975 में 3412 टन था तो 1995 में 1,25,282 यानी 33.7 गुना बढ़ गया। इन सब निर्यातों का मूल्य सन 1975 में 85,17,000 डॉलर था तो सन 1995 में 14,45,50,000 डॉलर का हो गया।
हर वर्ष बढऩे वाली पशु संख्या से अधिक पैमाने में मांस का निर्यात किसकी सूचना देती है? पशु संपत्ति की कम होने की गति को ही सूचित करती है न। सन् 1951 में हर 1000 व्यक्ति के लिए 700 पशु थे तो वही संख्या सन 2001 तक 400 तक घट गयी। ऐसे ही चलेगा तो सन 2011 तक 200 तक घटेगी। उपयोगी जानवरों को निरूपयोगी घोषित कर उन्हें वधशालाओं में भेजना दुखदायक नहीं तो और क्या है? हर वर्ष बंग्लादेश और पाकिस्तान को 20,000 पशु संतति लुका-छुपी रवाना होते हैं।
हमारी देशी पशु जाति को वहां के वातावरण को सहने की क्षमता है। उनमें रोग निरोधक शक्ति के साथ विशेष प्रयोजन, सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्य हैं। इसीलिए उनके रक्षण की अत्यंत आवश्यकता है। ये पशु भारत में कृषि के लिए आधारभूत सजीव दोस्त हैं। सेन्द्रिय खाद और शक्ति की स्रोतस्विनियां हैं। मांस और चर्म के निर्यात के द्वारा चलने वाला व्यापार संबंधी वृद्धि अभिवृद्धि नहीं है। वह विनाश के लिए बनाया गया एक मार्ग मात्र है। एक पशु वधशाला से 20 करोड़ रूपये के पशु निर्यात हो रहे हैं तो वहां मारे जाने वाले पशुओं की सहायता से यहां उत्पन्न होने वाली खाद और शक्ति का मूल्य 910 करोड़ रूपये हम खो रहे हैं इस रीति से हम आर्थिक नाश मोल ले रहे हैं। इस कारण भारत में कृषि व्यवस्था का नुकसान होगा और गरीबी बढ़ेगी।
भारत की कृषि व्यवस्था में औद्योगिक विकास से संपन्न देशों से अधिक पशुओं की आवश्यकता है। पशुओं के प्रति दृष्टिकोण में अंतर है। विदेशों में कृषि उत्पत्तियों से ‘डायरी’ और कृषि के लिए उनका पोषण किया जाता है। इनके लिए संकर जाति के पशुओं की सृष्टि देशी पशुओं के लिए एक थपेड़ ही है। सन 1996 में विश्व की आहार-कृषि संबंधी संस्था से एक प्रतिवेदन निकला था। उसके अनुसार भारत में देशीय पशु जातियां अति शीघ्र गति से ओझल हो रही हैं। आंध्र प्रदेश के पुंगनूरू से संबंधित विशिष्ट जाति की संतति लगभग अदृश्यप्राय है। विश्व विख्यात ‘ओंगोलु’ जाति की संतति की स्थिति कुछ इस प्रकार की है। स्वादेशी जाति की गायें आज 32 प्रकार की ही हैं। कृषि कार्य को स्थिरता मिलनी है तो पशुओं और फसल के प्रकारों में पुनर्विकास होना है।
पर्यावरण कालुष्य निवारण के लिए पशुओं की रक्षा और उनका पोषण चाहिए। पशु रक्षण पर ध्यान न दिये जाने के कारण आज नदियां पानी के कालुष्य की चंगुल में आ गईं हैं। शास्त्रज्ञों का कथन है कि आज पशुवध के कारण भूकंप आ रहे हैं और उनसे जीवों का विनाश भी हो रहा है।
गौ संतति की रक्षा से आज भारत की आर्थिक व्यवस्था का विकास जुड़ा हुआ है। मांस और खाल के निर्यात के बदले गौपालन और संरक्षण को संस्थाएं स्वीकार करती हैं तो कितने ही गुणे की आमदनी हो सकती है। उससे पर्यावरण की शुद्धि-समृद्धि संभव है। उसका परिणाम ही जनता के लिए आनंदमय जीवन की प्राप्ति। हमारा दृष्टिकोण हमारी आर्थिक व्यवस्था और संस्कृति के अनुकूल और संपूरक होना चाहिए।
साभार: गोमाता-जगन्माता
प्रो.यद्दनपूडि वेकटरमणराव
The Unholy Business of Cows
Cows are held in higher regard than other animals in India. Some consider them holy, and deserving of protection not only from cruelty but also from activities, which would be considered routine in the West, such as slaughter for consumption and for leather goods. The cow’s special status in India is enshrined in law. With the exception of two states, the slaughter of cows and calves is totally forbidden, whatever the reason and at whatever age. Bulls and bullocks and she-buffaloes are protected up to 15 years of age. But all this apparent reverence and protection masks a trade in cows and cow products which involves unbelievable barbarity and cruelty. Much of the abuse stems from the fact that the trade in, and slaughter of cows is almost entirely clandestine and illegal – but the authorities which should be stopping it are routinely bribed to let it continue. There is, therefore, no scrutiny or regulation of the trade anywhere along the line. Laws enacted in various Indian states reflect a variety of opinions, and cattle slaughter is permissible in some and not in others. This means that cattle that are set for slaughter must be transported from places where they are, to the states where cow slaughter is permitted.
The story of the annual smuggling of an estimated 1.5 million cattle says much about modern India– about the sometimes hypocritical treatment of supposedly sacred cows and the corruption that allows the $455-million (according to some estimates) illegal trade to flourish. But ultimately this story is about supply and demand. Hindu-majority India has an estimated 280 million cows but killing and eating them is legal in only a handful of states. Meanwhile, Muslim-majority Bangladesh, where beef is eaten with relish, suffers from a shortage of cattle. Half of the beef consumed in Bangladesh comes from its large, western neighbour. The snaking border that divides the two countries runs for 1,300 miles or roughly 4,096 kilometers. The illegal movement of cattle consisting of only cow and its progeny (no buffaloes) via land and water from India to Bangladesh is an old standing problem that has been going from bad to worse. Cattle-smuggling is flourishing, particularly from Assam and West Bengal, so much so, that beef processing and leather units have been established along the border in Bangladesh.
The cattle smuggling from West Bengal to Bangladesh across Indo-Bangla border is taking new routes and new masks. There is a slump in the volume of trafficking thanks to vigil and active campaign by Border Security Force (BSF). Officers of the BSF, whose jawans patrol the 915- km stretch of the border that West Bengal shares with Bangladesh, estimate that cattle smuggling has come down by more than 70 per cent since the NDA government at the Centre made the issue one of its top priorities. In April last year, Union Home Minister Rajnath Singh instructed BSF personnel deployed along the border to check cattle smuggling.
Four months later, the minister touted the drop in figures for cattle smuggling as one of the government’s major successes: from about 20-22 lakh cattle that would be smuggled across the border every year, he said, the numbers had come down to 2-2.5 lakh cattle in 2015.
Since the BJP-led government came to power, the BSF has given its men discretionary powers to shoot at cattle smugglers, a strategy that has reportedly contributed to the drop in smuggling. In December 2015, in a written reply to a question in the Rajya Sabha, Minister of State for Home Kiren Rijiju had said, “During the current calendar year, 21 cross-border criminals were killed by the BSF along the Bangladesh border, of whom 16 were allegedly cattle smugglers.”
Interestingly, price of beef in India is Rs 150, while it is more than double in Bangladesh, Rs 350. With the recent slump in the smuggling and resultant demand-supply gap, the beef price has skyrocketed, making trafficking riskier but much lucrative. The economics of the whole operation is found to be quite lucrative enough for people to ignore the risks to life. At least 60,000 cows are used to be smuggled into Bangladesh every day at various points along the 4,096.7-km long border, although there is no real way to corroborate those figures. For last 2-3 years cow smuggling in North Bengal especially through Cooch Behar and Alipurduar district have been increased spontaneously and due to inactivity of police administration. Also involvement of powerful political leaders behind the curtain has added extra strength to such criminal activities. Cow theft cases in those districts have reached to the peek due to the inaction of police. Mostly Bangladeshi Muslims are involved in cow theft cases and cow smuggling as reported by the affected local public.
The Modus operandi in South Bengal
The cows are being brought from Rajasthan, Haryana, Uttar Pradesh,Odisha, Bihar, Jharkhand to two major haats – Pandua and Mograhaat in Chinsurah subdivision and Mayapur in Arambagh subdivision. They are being loaded on trucks. The trucks move along Nadia Iswar Gupta Setu, Kalyani Barrackpore Expressway to reach Nilgunj, Jessore Road to reach border point Bongaon.
Some cows come to Haringhata and Birohi haat. The other route is Kalyani,NH34, Chakdah, Chakdah-Bongaon Road. With stricter vigilance, they are now entering Bangladesh through Tetulia. The other border used is Angrail border. Angrail has a unique topography of being a thumb-shaped land mass surrounded from three sides by the Icchamati River which flows into both the countries.
In Bangladesh the price for beef is Rs 12,000 – 14,000 per quintal. Bigger cows from Haryana and Rajasthan are normally 2.5 to 3 quintal in weight which means one cow, sometimes, costs Rs 50,000 which is a lucrative deal. Apart from this fact, sticks sharpened at one end are used by these men to poke the cattle and infuriate them if the BSF does indeed turn up. A dah (long thick dagger native to the area) is also carried for extra protection. In recent times, country-made pistols are also in use along with crude bombs. Men who cross the border to hand over the cattle known as Ghorupaatis, stay illegally in Bangladesh until noon and then simply walk or take a train back home in broad daylight, cocking a snook at the security forces in both the countries.
The modus operandi in North Bengal
There are two kinds of routes in North Bengal which the smugglers use for cattle rustling. In north Bengal the majority of cattle are being smuggled across 172 km long border that Malda district shares with Bangladesh. The cows come from distant places like Gujarat, Punjab, Uttar Pradesh and Bihar. Majority of these cows come to Gonda Cattle Haat in Jharkhand. From here the consignment comes to Sahebgunj. From there the cattle are taken to Hamidpur Char via Rajmahal. From there the cattle consignment goes to Baishnabnagar to Murshidabad’s Nimtita. Alternatively, the consignment moves from Rajmahal to Dhuliyan and Pakur. At Pakur, the cows are stamped with specific number.
From here, it takes riverine route (Malda shares 30 km riverine border with Bangladesh). The cows are bound one after another by long iron-chain. They are then taken to the Ganga by some hand-picked youths called Rakhals, known for their swimming skills. They then take the line of cow along the riverine route to Bangladesh. Since cows are naturally very good swimmers, such smuggling happens at night. For facilitating the smuggling of each pair of cow, a Rakhal takes Rs 3,000.
The cattle reach the Chapai at Nababgunj in Gomostapur police station area in Bangladesh. Documents of ownership are made here before taking to different slaughter houses in Bangladesh.
The second route is entirely through land border. From Jharkhand, it goes to Shamshi Ghat and from there to Ratanpur Haat, Habibpur Haat, Harischandrapur, Kedariparaa, Kutadaha, Songhat. Since a huge stretch of Indo-Bangla border is without fence, smuggling is easy. The cattle are smuggled across to Pengabari, Naogaon, Rohanpur Slaughterhouse.
But what Delhi sees as ‘rustling’, Dhaka sees as legitimate cross-border trade. So during the November 16-17 last year Home Secretary-level talks between the two countries, Bangladesh raised the issue of rising prices of beef in that country as a result of the BSF crackdown. Dhaka allegedly also requested Delhi to “go easy” on cattle smugglers. The BSF has identified 64 Border Outposts (BOPs) along the Bengal-Bangladesh border that are vulnerable to cattle smuggling. Of these, they say, 46 account for 80 per cent of the cattle smuggling casesThe BSF’s outposts are mostly bamboo sheds where jawans spend the nights. In the mornings, these outposts see a steady stream of people who take their cattle to the other side to graze. The jawans greet the cattle herders, reminding them to be back before sundown. Cattle smuggling instances have gone down by over 90 per cent this year in this area. This area constitutes for 80 per cent of this illegal activity comprising districts of North 24 Parganas, South 24 Parganas, Nadia, Murshidabad and Malda. BSF has innovated low cost solutions like digging ditches and improvising fence security by welding GI pipes about 2-feet above the ground, BSF official claims that it has shown very good results in checking the illegal activity. The border guarding force, over the last five months, has plugged some of the most vulnerable patches of this 4,096-km border by not only increasing troop strength but also providing them with more weapons, vehicles and a fresh fleet of fast attack motorboats to patrol riverine areas.
For decades, the smuggling and sale of cattle across the border have provided sustenance to families in these areas. The trade has thrived, often as a family profession, with secrets passed down generations: how to evade the BSF, the best routes to transport cattle, how to ensure stealth while crossing the border. The economics of cattle smuggling is what makes it more lucrative for families on both sides of the border. For most Indian farmers, a cow past its prime is of little value. Besides, tractors have long replaced bulls and oxen and they are of little use too. So the cattle are sold to traders who supply them to slaughterhouses in India, both legal and illegal. But with beef selling for around Rs 350-Rs 450 a kg in Bangladesh, in comparison to Rs 150 a kg in Bengal, cattle rustling is far more lucrative. Thus is the unholy business of the cows.
By Nilabh Krishna
How to light a communal fire
The Superintendent of Police of Khurda is not a face for me, just a voice, that too faint, literally and metaphorically. I have not met Mr Dilip Das, but in the last two years, a group of us have called him up 350 times, which makes it an average of once in two days. In the beginning, he took one out of five calls; in four months, from mid-September 2015 to January,he answered only three of my 50 calls. I call him so often because I am very fond of myself, precisely, my human status.
In keeping with this, I have taken it upon myself to rescue the gentle cows, the delicate calves, the hardy bullocks and the majestic bulls—right out of the clutches of the cattle-smuggling/slaughter mafia. Khurda, the district in Odisha, of which Das is the chief law-keeper — along with Bhadrak in Odisha– is the hub of the cattle-smugglers. My practical identity: Honorary Animal Welfare Officer with the Animal Welfare Board of India( ANBI) and volunteer, Gau Gyan Foundation, an NGO, deeply into the rescue and rehabilitation of cattle.
To set the record straight, I started this long before there was even a hint of the saffron party coming to power and before the idea of India was re-defined by a foreign news agency that equated the right to eating beef with the right to food and freedom of choice. How the idea was fuelled by some pseudo-humans is, by now, history. Maybe, one day, an alter ego of Romilla Thapar would literally illuminate that side of India’s history in which hurting other life forms even through the breath is an avoidable human error.
Such is the evil grip of misinterpreted history that a Sanjiv Marik, despite being Director General of police, likes to open his mouth big about his knowledge of ancient Indian history, in which he says there was no bar on beef-eating, while he keeps his ears firmly shut to the talk of the Orissa Prevention of Cow Slaughter Act and the Prevention of Cruelty to Animals Act.
Police-Criminal Nexus
Marik gave lilting support to the cattle mafia as chief of police in Odisha until last November—through sins of omission– but it was I who heard the sweet music: Marik was forced to go on leave, then, given a punishment posting as head of Orissa State Road Transport Corporation and is now probably retired. Marik’s less-than-dignified exit from the office of DGP had apparently nothing to do with his covert support to the cattle mafia, but I exhaled deeply: To an El Capone victim, it does not matter whether the blue-blooded gangster was at last caught over a white collar crime like tax evasion, as long as he was caught.
Before I am accused of criticising the ex-DGP of Odisha unduly, let me say that I have said the same thing in a petition to the former chief justice of the Orissa High Court, Amitava Roy, and in a written complaint to the present Environment Minister. Copies of these were also officially routed to Marik through the AWBI a few months before his exit, and when a 21-year-old volunteer personally showed them to him last July, Marik laughed them off. The same Marik had fumed when I asked him for police protection for cattle rescue work. He asked me to collect all the stray cattle of Odisha and take them to Delhi. This was in the September of 2014.
The crooked part of this remark was that he was trying to negate the seriousness of this highly organised crime, worth trillions of rupees, with the Odisha police playing a key role in it. Odisha is a converging point of cattle smuggled from four states– Andhra Pradesh, Telangana, Jharkhand and Chhattisgarh. Aided by the police, each day and night, pick-up vans, trucks and sealed containers speed along NH 5 and NH 6 to reach the slaughterhouses of West Bengal and Bangladesh.
I also have pictures of other big vehicles stuffed with cattle: an emptied out luxury air-conditioned bus, a milk van, a train bogey and an Indian Oil container. So far, in my knowledge, the only means of transportation the smugglers have not used is the aircraft. Given the benevolence of some of our wealthy and internationally-connected artistes, thinkers and politicians, who knows, we might hear of a plane load of bulls being carted for a beef party!
Alarming Statistics
Pre-Eid, the smuggling through north Odisha goes up from an average of 4,000 per day to 5,000 plus/day. Almost an equal number goes to Andhra and Telangana from the south of the state. I can say this on oath in court—and I did through a Public Interest Litigation (PIL No 4238) in the High Court of Orissa–but all hell breaks loose when I quote these statistics to the top cops. From being accused of indulging in ridiculous exaggeration to being called a nit-wit, I have faced everything.
The only people who would not dare deny it are the junior cops—from those of the Begunia police station in Khurda to Khantapada Police Station in Balasore– because it is they who manage the networking of the illegal business. My fellow volunteers in every district along the east coast of Odisha have a list of the names of cops, musclemen, smugglers and the middlemen who are part of the racket.
Quite a large number of these are Hindus. In fact, I personally know some who spew venom against the cow-killers in public and take money from the smugglers on the sly—for facilitating the truck movement. The cop conduits also know what we rescuers do. Though healthy cows, calves, bulls and bullocks, a majority of them of the choicest Indian breeds, are in high demand in the beef markets abroad. They are smuggled from West Bengal into Bangladesh, from where they are exported to the middle-east and Europe.
The cattle-smugglers, posing as traders, buy them in thousands at the weekly cattle markets organised in every nook and cranny of India, a majority of them illegal. As part of rescue work and evidence-gathering, I have visited scores of them in Karnataka, Andhra Pradesh and Odisha.
Political Patronage
I got two cattle markets shut down officially, one in Begunia (Khurda, Odisha) where the Biju Janata Dal government has the devil-may-care attitude towards the cow protection laws and the other in Karhi Bhadar (Balod, Chhattisgarh) where the Bharatiya Janata Party government has the holier-than-thou approach.
The shutting down of a cattle market does not, however, mean an end to the crime of smuggling/slaughter. As long as the police and the administration are with the mafia, the illegal business goes on uninterrupted. In both Begunia and Karhi Bhadar, the illegal business is still thriving.
When I first landed in Begunia in October of 2013, there were just three or four major hubs of the cattle mafia. Today, there are more than what I can count. Each one of these is known to the SP, the Begunia police station cops and to the volunteers.
I have sent a couple of faxes and many SMSs to Das, requesting him to raid these illegal dumping yards in order to nip the crime in the bud. Better still, he can prevent the collection of cattle at these places. He dismisses my messages with silent contempt. He does not believe me and my fellow volunteers about the statistics of smuggling: the Khurda-based smugglers contribute at least 40 per cent to the 1.25 lakh cattle trafficked from Odisha to West Bengal every month.
Sometimes, we are lucky to get the truck numbers in advance. I sent Das a list of 65 truck numbers on September 13, 2015. He, as a rule, asks me and other callers from Delhi for the “exact location” of the illegal holding areas. The local volunteers are ever-ready to escort the police to these places, but Das snubs them bitterly.The junior cops keep slapping false cases against them.
Justice Delayed
Given the police support to the mafia, the volunteers also don’t get entangled in FIRs and court cases. My own experience with the courts has been punishing. The 358 cattle I rescued in Kusupullah under Begunia PS in 2013, were given in the custody of village sarpanch Bulla Swain in violation of the law, and from the sarpanch to the mafia that took them for slaughter within no time. In the court, the police showed the cattle as “Stolen”. I dragged my heels in the Khurda district court for 45 days over this. Not having got justice, I went to the High Court of Orissa, where the case is still pending—after two long years.
But the rescue work has given me an insight into ground politics, how the police fail us rescuers and how they aid the criminals. I have also encountered dramatically diverse views on the cow-smuggling/slaughter issue. It is the most lucrative business for Hindu traders and Muslim smugglers, just another animal for the beef-eaters,who neither know nor care to know whether it is against the law, an object of vengeance for some fundamentalist Muslims who cannot expend their bile against the Hindus through other means and a perfect front for the Hindu fundamentalists to let out their steam against Muslims.
Divine Bovines
For the vast and silent majority of seculars, Hindus and Jains, however, the cow and the bull are pieces of divinity they love from the core of their hearts. This silent majority of people, across the boundaries of region, gender and age, suffer deeply when the cow and family are hurt. Their tears and smiles are linked to those of the cows, bulls, calves and bullocks they hold dear. They are also enraged at the open police support to the smugglers and killers of cattle.
The police, especially at the top, are either in denial of the crimes against cattle or afraid to touch this “communally sensitive” issue. By now, I know what this term means: there is a large number of Muslims in this illegal trade, some of them are dreadful dons. If there is a police raid on their dens, they would hit back. The Hindus in the neighbouring places, forever charged about the cow issue, would be provoked and the police would have a communal riot on their hands.
In the face of such arguments, I simply cannot push the envelope about animal welfare law-keeping. Giving this reasoning, the police have kept themselves—and me–off at least a hundred places all over the country, from the Kasai Gali in Belgaum and a slaughterhouse on the highway in Bailhongal (both in Karnataka) to Sakshigopal, Balipatna, Balasore, Bhadrak and Khurda in Odisha.
Studied Silence
Repeated pleas to the Khurda SP to nip the crime of cattle-smuggling in the bud have gone unheard. Today, Kadab is a communal tinderbox. On December 27, 2015, the police were informed hours before the smuggling of cattle happened at midnight. The Khurda SP did not do anything. The Begunia police did not reach the spot. Two trucks, cruelly stuffed with 121 cattle, which itself is enough to enrage any rescuer, were caught by the villagers. Many cows died of sheer suffocation. By the time the trucks were driven to the Begunia Police Station and a complaint was booked, it was the afternoon of the next day (FIR No.194/15 Begunia PS).
The cattle were given back to a hoax animal welfare activist. We filed a case (G.R. Case No 1416/15) in the Khurda District Court about the bungling done by the Begunia police. My coordination from Delhi ended with this case. I know about the rest of the story of communal tension build-up from the volunteers and a study of the FIRs, which, for a change, were booked thick and fast by the Begunia PS.
The story goes like this: The cattle mafia, that suffered a loss of at least 60 lakh rupees because of the seizure of cattle and trucks on December 28, hit back and brutally beat up a few volunteers after laying a trap through their Hindu ‘friends’. This happened on January 12 post-midnight. The boys, whose phones had been snatched, who hid in thick bushes all night, reached the Begunia police station the next morning, were shocked to see that a complaint had already been filed against them by the smugglers. The mafia’s false complaint, FIR No. 3/16, on January 13 was filed at 2 A.M. and that of the genuine victims, FIR No. 04/16, in the late evening of January 13.
This brutal assault and the police foul play forced the Hindu volunteers to lie low and stay off rescue work, but on February 9, 2016, they got a chance to square up. After rescuing five cattle being smuggled in a pick-up van, they thrashed the smugglers. Since the police have a record of giving the cattle back to the mafia, the rescuers did not bother to file a complaint. Later, the smugglers kidnapped two Hindu boys and locked them up in a masjid. Only the intervention of an elderly Muslim, the Hindus say, saved the boys.
Eyeball-to-Eyeball
On the morning of February 10, about 300 Hindu men went to the house of the Muslim smuggler, armed with sticks and rods, but did not find him there. The other side, they claim, set fire to a barn and accused the Hindus of having lit it. This invited several serious cases against 80 Hindu men. Before this incident, the police refused to book a complaint against an accomplice of the smugglers who, the Hindus claimed, stamped on a Shivling in a temple and posted his picture on the social media. I too have this picture. For ten long days, this issue kept the two sides in Kadab village locked in negotiations on how to end the smuggling of cattle and how to live in peace with each other.
On February 20, a notorious middleman, named Battapani, visited the village to persuade the Hindus to call a truce. His idea of it was to make the Hindus look away from the crime of cattle-smuggling. Earlier, Battapani, himself a Hindu, had delivered death threats to cow-rescuers over the phone on behalf of the Muslim smugglers. I heard him–for 58 long minutes on a conference call in the last week of February—sweet talk to a volunteer about the need to “compromise” with the smugglers. The volunteer, like the rest of the Hindus, would brook none of this talk. As of now, there is an impasse.
The Muslims against whom cases have been booked, even if they are arrested, have no worry because the Khurda police and the money bags of the smugglers are with them. The Hindus know that if the 80 odd people, against whom false cases have been booked, go to jail,not only will they rot there but the volunteers who do lawful cattle protection in Khurda would also be muzzled.
On the morning of February 21, I was told, the mango and cashew groves of a couple of Hindus were burned down as revenge for the loss of livelihood that the freeze on cattle-smuggling means for some Muslims. As of now, there is an eyeball-to-eyeball situation between the two sides. Armed police were posted in the village and the District Collector organized a peace meeting, which was too little, too late. There is simmering tension in Kadab, and it is spreading. In the rest of Khurda, cattle-smuggling is in full swing.
On March 2, 2016, some people in Lodhachua village, 12 kilometers from Kadab, caught a bolero stuffed with five cows, untied the cows, let them loose, beat up the smugglers and did not bother to inform the police. When I made contact with one of them and told him not to take the law into their hands, he shot back: “Are you out of your mind to be asking us to seek police help?” I had no answer.
Kadab is on the brink of a full-fledged communal war–entirely on account of the crime of cattle-smuggling that the Khurda police stubbornly refuse to check. The build-up has been slow, steady and systematic. What I find shocking is this: in the times of a Dadri lynching and an Agra rally (Muslims warned of ‘final battle’ at the Sangh meet/Indian Express story/ Feb 29, 2016), can the police anywhere in the country afford to ignore the crime of cow smuggling and slaughter, much less aid it through sins of commission and omission as the Khurda police are doing? This is a question that the SP of Khurda must be made to answer.
By Jagpreet Luthra
हर भारतीय को गौ-संस्कृति का आवाहक होना चाहिए
बैंगलुरू में उदय इंडिया से बात करते हुए श्री रामचन्द्रपुरा मठ के शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती का कहना है ”गौभक्ति आर्थिक जीर्णोद्धार और गांव की सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर ले जाती है। यही पूरे देश के उत्थान का कारण भी होगा। बिना कुछ कहे ही यह समझने योग्य है कि आर्थिक जीर्णोद्धार और सांस्कृतिक रूप से जीवंत भारत विश्व गुरू की पूर्वनिर्धारित भूमिका निभाने के लिए तैयार है। भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक क्रांति की जड़ें गाय और उसकी शंकराचार्यान के संरक्षण में ही निहित हैं।
मठ के शंकराचार्य ने भारत और गौरक्षा को ध्यान में रखते हुए कुछ नारे भी दिये हैं जैसे-गौ विश्वस्य मातरम, गौरक्षा मम् दीक्षा, गौ रक्षति रक्षता, चलों गांव की ओर चलों गौ की ओर- ये नारे सचमुच पूरे देश में लाखों लोगों के जीवन में रोजमर्रा के मंत्र बन गये हैं जो गाय और उसकी शंकराचार्यान रक्षा के लिए जागरूकता का मंत्र बन गया है।
समाज के जागृत होने का ही कारण है कि आज यह दो समूहों में बंट गया है- जो आपस में लड़ाई-झगड़े की वजह भी बनता जा रहा है। एक समूह वह है जो गौरक्षण का संकल्प कर चुका है तो दूसरा समूह वह है जो लगातार होती गौहत्याओं के मामलों में खुद को शामिल किये हुए है। शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती कहते हैं ”इन हिंसक घटनाओं और फसाद को रोकने का एकमात्र उपाय यही नजर आता है कि गाय को भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया जाये, उसे संवैधानिक पहचान दे देने से इस मुद्दे पर होने वाले हिंसक घटनाओं और बहसों का कोई प्रश्न ही नहीं उठेगा।” महाराज का दावा हैं ”किसी भी धार्मिक ग्रंथ में या संप्रदाय में गौमांस खाने के अधिकार की बात नहीं कही गई है। आज गौमंास पर जो विवाद चल रहा है वह मात्र राजनीति और चुनावी समीकरण हैं।”
शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती ने 2007 में गाय और उसके वंश के महत्व के विषय में जन-जागरूकता फैलाने के लिए पूरे देश भर में तीन बार ”विश्व मंगला गौ ग्राम यात्रा” का आयोजन किया। शंकराचार्य के सचिव श्री कृष्ण प्रसाद ने इस यात्रा के विषय में बताया कि यह यात्रा 10 लाख किलोमीटर लंबी थी, 5.59 लाख गावों से गुजरते हुए यह यात्रा पूरी की गई। इस यात्रा के दौरान शंकराचार्य जी ने 1.23 लाख जनसभाओं को संबोधित किया, जिसमें 1000 बड़ी सभाएं की गईं, इनमें 10,000 लोगों से अधिक की भीड़ जुटी। ”विश्व मंगला गौ ग्राम यात्रा” हरियाणा के कुरूक्षेत्र से शुरू होकर नागपुर पहुंची, जहां इसका समापन हुआ। कुरूक्षेत्र और नागपुर में जो जनसभाएं की गई उनमें लगभग 1 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी।
इसी तरह की एक विशल यात्रा साल 2008 में कर्नाटक में निकाली गई जो, यहां के 987 होब्ली मुख्यालय से होते हुई गुजरी और इन स्थानों पर महात्मा जी ने गौरक्षण का ज्ञान देते हुए लोगों को संबोधित। महात्मा जी बताते है ”हमने अपने सभी अभियानों में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने पर भी अधिक जोर दिया है, ताकि कृषि में रसायन और उर्वरक का कम से कम इस्तेमाल हो, और खेतों में उगने वाली घास से गायों की सेहत पर आर्थिक या भावनात्मक रूप से बुरा असर न पड़े। जिसका प्रभाव यह हुआ की यहां के लोग ने सरकार से जैविक खेती के लिए मदद की मांग करनी शुरू कर दी।
कुछ लोगों ने महत्मा जी से पूछा कि बूढ़ी गाय को पालने का क्या फायदा उससे कोई लाभ तो मिलता नहीं फिर ऐसी गायों को क्यों पाला जाये? ऐसे लोगों के सवालों पर शंकराचार्य जी ने पलटवार करते हुए पूछा कि क्या बुढ़ापे में आप अपने माता-पिता को छोड़ देते हैं वो भी सिर्फ इसलिए की वह कमजोर या बीमार हैं या उनका अब आपके लिए कोई उपयोग नहीं बचा है? गाय भले ही बूढ़ी हो गई हो, लेकिन फिर भी उसे प्राकृतिक मृत्यु ही प्राप्त होनी चाहिए, हमें गाय की देख-रेख भी बिल्कुल वैसे ही करनी चाहिए जैसे हम अपनी मां की करते हैं। जैसे हमारी मां हमारे पैदा होने से लेकर बड़े होने तक हमारी हर जरूरत पूरी करती है ठीक वैसे ही गाय भी हमारे जन्म से लेकर अंत तक हमें बहुत कुछ ऐसा देती है हमारी जरूरतों को पूरा करती है तो हमें गाय के बूढ़े हो जाने पर यह नहीं सोचना चाहिए कि वह बूढ़ी हो गई है तो हमें उसे कसाई को सौंप देना चाहिए। बल्कि इसके बजाये हमें बूढ़ी गाये के रहने की व्यवस्था करनी चाहिए।
चरित्र हनन की साजिश
एक महिला (इसी मठ की एक भक्त) के साथ कई बार बलात्कार के आरोप में श्री रामचन्द्रपुरा मठ के शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती दो साल तक कटघरे में रहे। ये मामला काफी लंबे वक्त तक इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सुर्खियों में रहा। मठ की रामकथा करने वाली महिला भक्त प्रेमलता दिवाकर ने मीडिया के पूछने पर बताया कि उसका साल भर में 162 बार बलात्कार किया गया और बाद में सीआईडी पुलिस को भी उसने यही बयान दिया। यह कहना गलत नहीं होगा कि यह सारी चीजें निहित स्वार्थी तत्वों द्वार सिखाई गर्ईं थी जो अपनी-अपनी जगह सुरक्षित बैठे थे। लेकिन, जो चीज सीआईडी पुलिस की जग हंसाई का कारण बनी, वह थी वह चार्ज शीट जिस पर सेशन कोर्ट में केस किया था। जो की प्रेमलता दिवाकर के बयान के अनुरूप ही थी।
हालांकि, सीआईडी पुलिस के द्वारा दायर किये गये आरोप पत्र को अदालत ने खारिज कर दिया और कहा कि केस को आगे बढ़ाने के लिए उपयुक्त सबूत नहीं हैं। जिसके बाद याचिका और आरोप पत्र खारिज कर दिये गये। इसके बाद शंकराचार्य को बड़ी राहत मिली। अदालत के इस फैसले के बाद दक्षिणी बैंगलोर के गिरीनगर मठ के सामने शंकराचार्य के हजारों भक्तों ने अपनी खुशी को जाहिर करते हुए नाचना-गाना शुरू कर दिया और जय श्री राम, जय श्री राम के नारे लगाने लगे।
शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती जो हमेशा अपनी शांति, शिष्टता, धैर्य, नम्रता और विनम्रता के लिए जाने जाते रहे हैं। अदालत द्वारा उनके खिलाफ दायर आरोप पत्र खारिज होने के बाद जब उनसे इस पर टिप्पणी करने को कहा गया तो उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया, लेकिन जोर देने पर उन्होंने कहा-जब मेरे ऊपर आरोप लगाये गये और मेरे ऊपर आरोप पत्र दाखिल किया गया तो मुझे दुख नहीं हुआ। और जब अदालत ने उपयुक्त सबूत न होने पर चार्ज शीट को खारिज कर दिया तो मुझे कोई खुशी भी नहीं हुई, क्योंकि मैं दुनिया के सुख और दुख के पक्ष से बहुत ऊपर उठ चुका हूं। मैं इस तरह की चीजों से विचलित नहीं होता। आग मुझे जला नहीं सकती और जल मुझे भिगो नहीं सकता। शरीर तो कपड़े की भांति है जो बदलता रहता है मुख्य तो आत्मा है जिसे कोई मार नहीं सकता। मैं शरीर नहीं हूं, आत्मा हूं, शरीर मरता है आत्मा तो सदैव अजर-अमर है।
उन्होंने आगे कहा कि मैं निरंतर अपनी इस यात्रा को आगे बढ़ाता रहूंगा और लोगों में देश और धर्म के प्रति जागरूकता पैदा करता रहूंगा। देश हमारे शरीर की तरह है जबकि धर्म हमारी आत्मा है। आत्मा के बिना शरीर का क्या महत्व वह बेकार है। धर्म के बिना शरीर (देश) निरार्थक है। मेरा काम सांस्कृतिक पुर्नाजागरण, नैतिक उत्थान करना है। देश की आंतरिक नब्ज को मजबूत करके समाज का फिर से अविष्कार करना है और मैं अपनी इस यात्रा को निरंतर प्रवाहित करता रहूंगा।
शंकराचार्य कहते हैं ”राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी गाय और उसके वंश के संरक्षण के पक्षधर थेÓÓ असल में उनके लिए गाय संरक्षण आजादी से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण था। उनका कहना था कि हम आजादी तो किसी भी तरह हांसिल कर ही लेंगे, लेकिन सवाल यह है कि क्या आजादी के बाद हम अपने पशु धन की रक्षा करने में सक्षम हो पायेंगे।
शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती के नेतृत्व में 31 जनवरी 2010 में एक प्रतिनिधिमंडल ने भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुलाकात की और एक ज्ञापन सौंपा जिसमें भारत के 8.50 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर थे। इस ज्ञापन में गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए आग्रह किया गया था। प्रतिनिधिमंडल में पेशावर के शंकराचार्य, बाबा रामदेव, डॉ. एच. आर. नागेन्द्र समेत विभिन्न मठों के साधू-शंकराचार्य और सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों के नेता शामिल थे।
गौसंरक्षण के लिए ये कोई पहला अभियान नहीं था, बल्कि 1952 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के वक्त में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) ने गौरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की थी। इस तरह के अभियान लगातार लंबे वक्त से चले आ रहे हैं। हालांकि, आखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने गाय के संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार की गड़बड़ नीति पर अपनी निराश ही व्यक्त की है। गौरक्षण केवल हमारे देश के लिए एक आर्थिक सवाल ही नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पवित्रता और राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक है।
संघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए जन अंदोलन का आह्वान शुरू किया। कई वर्षों तक देशभर में यह अभियान चलाने के परिणामस्वरूप 1965 में भारतीय जनसंघ के बैनर तले पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अन्य नेताओं के नेतृत्व में करीब 2 लाख लोगों ने गौहत्या पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने के लिए राष्ट्रपति भवन पर दस्तक दी।
करोड़ों भारतीय की मांग को सकारात्मक दिशा देने के लिए शायद यह उचित वक्त है। अत: इस बात को ध्यान में रखते हुए शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती ने इस अभियान में तेजी लाने के लिए और इसके तर्किक अंत के लिए इस साल के अंतिम सप्ताह में या 2017 के शुरू में एक बार फिर से देशव्यापी दौरे पर जाने का निर्णय लिया है।
बंगलुरू से एस. ए. हेमंत कुमार
Why Indians are against killing cows for beef
सृष्टि के प्रारंभ में जब भगवान ने मनुष्य की उत्पत्ति की यानी मनुष्य को धरती पर भेजा तो उसके पालन के लिए उन्होंने गौमाता को भी धरती पर भेजा। सृष्टि की परिचालना के लिए ब्रह्मदेव ने अग्नि, वायु और आदित्यों की उत्पत्ति की ऐसा कहा जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने होम के द्वारा मानव की उत्पत्ति की थी। इसे देख कर अग्नि, वायु, आदित्य ने भी हवन करने का निर्णय लिया और उनके हवन द्वारा गाय(गौमाता) की उत्पत्ति हुई। अत: गाय की पूजा के द्वारा ये तीन देवता भी खुश होते हैं। हिन्दु धर्म में यह माना जाता है कि अग्नि से ऋगवेद, वायु से यजुर्वेद और आदित्य से सामवेद निकले हैं। इसलिए यह भी मान सकते हैं कि इन देवताओं की शक्तियों से जन्मी गौमाता की पूजा से तीनों वेदों का अध्ययन फल प्राप्त होगा और साथ-साथ अग्निहोम का भी। गौ पोषण से अग्नि होम कर्मनिष्ठा फल प्राप्ति मिलने का उल्लेख भी वेदों में किया गया है। गाय विश्व की माता है, गौ सेवा द्वारा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त किया है हमारे पूर्वजों ने।
आयुर्वेद ग्रंथ चरक, सुश्रुत, धन्वंतरी, भाव प्रकाश आदि ने गाय सेवा से प्राप्त पुण्य फलों में अनगिनत लोगों का उल्लेख किया है। समस्त उपनिषद अगर गाय हैं तो श्रीकृष्ण उस गाय के गोपालक रूप में वहन कर्ता, अर्जुन बछड़े के रूप में और ज्ञानी भक्तजन उस अमृतरूपी दुग्ध का पान करके धन्य हो पाए हैं। गीता के सार में कहा गया है
ज्ञान-मुद्राय कृष्णाय, गीतामृत-दुहे नम:
सर्वोपनिषदो गाव:, दोग्धा गोपाल-नन्दन:
पार्थो वत्सस्-सुधीर्भोक्ता, दुग्धं गीतामृतं महत्।
पवित्र गौमाता के तीन नाम और प्रचलित हैं- कामधेनु, सुरभि, नंदिनी यह तीनों प्रकार की गाय नहीं हैं यह व्यासकृत महाभारत में(अरण्य पर्व, अध्याय9,7,17 शलोक) में कहा गया है।
इनमें सुरभि और कामधेनु नाम गाय के लिए प्रयुक्त किये गये हैं। पुराणों में सुरभी को दक्ष प्रजापति की पुत्री और कश्यप ऋषि की पत्नी के रूप में वर्णित किया गया है। सुरभि की संतान ही
रोहिणी और गंधर्व हैं। समस्त विश्व में रोहिणी द्वारा गाय और गांधर्वों द्वारा अश्व जन्में हैं
गाय के मस्तक और कंठ के बीच गंगा रहती है। गाय के समस्त अंगों मे सकल देवता हैं। सप्त ऋषि, नदियां, तीर्थ सब गाय में हैं। गौ के चारों पैरों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है। इसीलिए गाय के चरणों को धोकर उस चरणोदक को सिर पर छिड़क लेते हैं। लोगों का ऐसा विश्वास है कि इससे समस्त पाप धुल जाते हैं। गाय के मुख में चारों वेद हैं। गौधूलि से नवग्रह दोष समाप्त होते हैं। सूर्य, चन्द्र, शिव आदि 33 करोड़ देवता गौमाता के शरीर में निवास करते हैं। गौमाता को आहार देने से देवता संतुष्ट होते हैं। गौ प्रदक्षिणा, भू-प्रदक्षिणा सम है। महार्षि वशिष्ट जिन्होंने गौ सेवा की थी। वही समस्त मानव जाति के लिए दार्शानिक बन पाये। महार्षि वेद व्यास का यह मानना था कि गाय जहां रहती है वहां पर शांत वातावरण होता है। कठोपनिषद का कथन है कि राजा बलि ने गौसेवा को अपना कर दैव चिंतन द्वारा मोक्ष की प्राप्ति की है। महाकवि कालिदास ने रघुवंश काव्य में राजा दिलीप की गौ-भक्ति का विस्तृत वर्णन किया है।
भारतीय संस्कृति गौसेवा के बिना संपूर्ण नहीं है। भारत में वेदों के समय से पहले से ही गायों को अत्यन्त आदर और सम्मान मिला है। वेद, स्मृतियां, पुराण, इतिहास, बाद के अनेक ग्रंथ और काव्य आदि में गौ की प्रशंसा है।
उपाली अपराजिता रथ