पुराणों में गौमाता
सृष्टि के प्रारंभ में जब भगवान ने मनुष्य की उत्पत्ति की यानी मनुष्य को धरती पर भेजा तो उसके पालन के लिए उन्होंने गौमाता को भी धरती पर भेजा। सृष्टि की परिचालना के लिए ब्रह्मदेव ने अग्नि, वायु और आदित्यों की उत्पत्ति की ऐसा कहा जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने होम के द्वारा मानव की उत्पत्ति की थी। इसे देख कर अग्नि, वायु, आदित्य ने भी हवन करने का निर्णय लिया और उनके हवन द्वारा गाय(गौमाता) की उत्पत्ति हुई। अत: गाय की पूजा के द्वारा ये तीन देवता भी खुश होते हैं। हिन्दु धर्म में यह माना जाता है कि अग्नि से ऋगवेद, वायु से यजुर्वेद और आदित्य से सामवेद निकले हैं। इसलिए यह भी मान सकते हैं कि इन देवताओं की शक्तियों से जन्मी गौमाता की पूजा से तीनों वेदों का अध्ययन फल प्राप्त होगा और साथ-साथ अग्निहोम का भी। गौ पोषण से अग्नि होम कर्मनिष्ठा फल प्राप्ति मिलने का उल्लेख भी वेदों में किया गया है। गाय विश्व की माता है, गौ सेवा द्वारा धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त किया है हमारे पूर्वजों ने।
आयुर्वेद ग्रंथ चरक, सुश्रुत, धन्वंतरी, भाव प्रकाश आदि ने गाय सेवा से प्राप्त पुण्य फलों में अनगिनत लोगों का उल्लेख किया है। समस्त उपनिषद अगर गाय हैं तो श्रीकृष्ण उस गाय के गोपालक रूप में वहन कर्ता, अर्जुन बछड़े के रूप में और ज्ञानी भक्तजन उस अमृतरूपी दुग्ध का पान करके धन्य हो पाए हैं। गीता के सार में कहा गया है
ज्ञान-मुद्राय कृष्णाय, गीतामृत-दुहे नम:
सर्वोपनिषदो गाव:, दोग्धा गोपाल-नन्दन:
पार्थो वत्सस्-सुधीर्भोक्ता, दुग्धं गीतामृतं महत्।
पवित्र गौमाता के तीन नाम और प्रचलित हैं- कामधेनु, सुरभि, नंदिनी यह तीनों प्रकार की गाय नहीं हैं यह व्यासकृत महाभारत में(अरण्य पर्व, अध्याय9,7,17 शलोक) में कहा गया है।
इनमें सुरभि और कामधेनु नाम गाय के लिए प्रयुक्त किये गये हैं। पुराणों में सुरभी को दक्ष प्रजापति की पुत्री और कश्यप ऋषि की पत्नी के रूप में वर्णित किया गया है। सुरभि की संतान ही
रोहिणी और गंधर्व हैं। समस्त विश्व में रोहिणी द्वारा गाय और गांधर्वों द्वारा अश्व जन्में हैं
गाय के मस्तक और कंठ के बीच गंगा रहती है। गाय के समस्त अंगों मे सकल देवता हैं। सप्त ऋषि, नदियां, तीर्थ सब गाय में हैं। गौ के चारों पैरों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है। इसीलिए गाय के चरणों को धोकर उस चरणोदक को सिर पर छिड़क लेते हैं। लोगों का ऐसा विश्वास है कि इससे समस्त पाप धुल जाते हैं। गाय के मुख में चारों वेद हैं। गौधूलि से नवग्रह दोष समाप्त होते हैं। सूर्य, चन्द्र, शिव आदि 33 करोड़ देवता गौमाता के शरीर में निवास करते हैं। गौमाता को आहार देने से देवता संतुष्ट होते हैं। गौ प्रदक्षिणा, भू-प्रदक्षिणा सम है। महार्षि वशिष्ट जिन्होंने गौ सेवा की थी। वही समस्त मानव जाति के लिए दार्शानिक बन पाये। महार्षि वेद व्यास का यह मानना था कि गाय जहां रहती है वहां पर शांत वातावरण होता है। कठोपनिषद का कथन है कि राजा बलि ने गौसेवा को अपना कर दैव चिंतन द्वारा मोक्ष की प्राप्ति की है। महाकवि कालिदास ने रघुवंश काव्य में राजा दिलीप की गौ-भक्ति का विस्तृत वर्णन किया है।
भारतीय संस्कृति गौसेवा के बिना संपूर्ण नहीं है। भारत में वेदों के समय से पहले से ही गायों को अत्यन्त आदर और सम्मान मिला है। वेद, स्मृतियां, पुराण, इतिहास, बाद के अनेक ग्रंथ और काव्य आदि में गौ की प्रशंसा है।
उपाली अपराजिता रथ
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