हर भारतीय को गौ-संस्कृति का आवाहक होना चाहिए
बैंगलुरू में उदय इंडिया से बात करते हुए श्री रामचन्द्रपुरा मठ के शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती का कहना है ”गौभक्ति आर्थिक जीर्णोद्धार और गांव की सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर ले जाती है। यही पूरे देश के उत्थान का कारण भी होगा। बिना कुछ कहे ही यह समझने योग्य है कि आर्थिक जीर्णोद्धार और सांस्कृतिक रूप से जीवंत भारत विश्व गुरू की पूर्वनिर्धारित भूमिका निभाने के लिए तैयार है। भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक क्रांति की जड़ें गाय और उसकी शंकराचार्यान के संरक्षण में ही निहित हैं।
मठ के शंकराचार्य ने भारत और गौरक्षा को ध्यान में रखते हुए कुछ नारे भी दिये हैं जैसे-गौ विश्वस्य मातरम, गौरक्षा मम् दीक्षा, गौ रक्षति रक्षता, चलों गांव की ओर चलों गौ की ओर- ये नारे सचमुच पूरे देश में लाखों लोगों के जीवन में रोजमर्रा के मंत्र बन गये हैं जो गाय और उसकी शंकराचार्यान रक्षा के लिए जागरूकता का मंत्र बन गया है।
समाज के जागृत होने का ही कारण है कि आज यह दो समूहों में बंट गया है- जो आपस में लड़ाई-झगड़े की वजह भी बनता जा रहा है। एक समूह वह है जो गौरक्षण का संकल्प कर चुका है तो दूसरा समूह वह है जो लगातार होती गौहत्याओं के मामलों में खुद को शामिल किये हुए है। शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती कहते हैं ”इन हिंसक घटनाओं और फसाद को रोकने का एकमात्र उपाय यही नजर आता है कि गाय को भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया जाये, उसे संवैधानिक पहचान दे देने से इस मुद्दे पर होने वाले हिंसक घटनाओं और बहसों का कोई प्रश्न ही नहीं उठेगा।” महाराज का दावा हैं ”किसी भी धार्मिक ग्रंथ में या संप्रदाय में गौमांस खाने के अधिकार की बात नहीं कही गई है। आज गौमंास पर जो विवाद चल रहा है वह मात्र राजनीति और चुनावी समीकरण हैं।”
शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती ने 2007 में गाय और उसके वंश के महत्व के विषय में जन-जागरूकता फैलाने के लिए पूरे देश भर में तीन बार ”विश्व मंगला गौ ग्राम यात्रा” का आयोजन किया। शंकराचार्य के सचिव श्री कृष्ण प्रसाद ने इस यात्रा के विषय में बताया कि यह यात्रा 10 लाख किलोमीटर लंबी थी, 5.59 लाख गावों से गुजरते हुए यह यात्रा पूरी की गई। इस यात्रा के दौरान शंकराचार्य जी ने 1.23 लाख जनसभाओं को संबोधित किया, जिसमें 1000 बड़ी सभाएं की गईं, इनमें 10,000 लोगों से अधिक की भीड़ जुटी। ”विश्व मंगला गौ ग्राम यात्रा” हरियाणा के कुरूक्षेत्र से शुरू होकर नागपुर पहुंची, जहां इसका समापन हुआ। कुरूक्षेत्र और नागपुर में जो जनसभाएं की गई उनमें लगभग 1 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी।
इसी तरह की एक विशल यात्रा साल 2008 में कर्नाटक में निकाली गई जो, यहां के 987 होब्ली मुख्यालय से होते हुई गुजरी और इन स्थानों पर महात्मा जी ने गौरक्षण का ज्ञान देते हुए लोगों को संबोधित। महात्मा जी बताते है ”हमने अपने सभी अभियानों में जैविक खेती को प्रोत्साहन देने पर भी अधिक जोर दिया है, ताकि कृषि में रसायन और उर्वरक का कम से कम इस्तेमाल हो, और खेतों में उगने वाली घास से गायों की सेहत पर आर्थिक या भावनात्मक रूप से बुरा असर न पड़े। जिसका प्रभाव यह हुआ की यहां के लोग ने सरकार से जैविक खेती के लिए मदद की मांग करनी शुरू कर दी।
कुछ लोगों ने महत्मा जी से पूछा कि बूढ़ी गाय को पालने का क्या फायदा उससे कोई लाभ तो मिलता नहीं फिर ऐसी गायों को क्यों पाला जाये? ऐसे लोगों के सवालों पर शंकराचार्य जी ने पलटवार करते हुए पूछा कि क्या बुढ़ापे में आप अपने माता-पिता को छोड़ देते हैं वो भी सिर्फ इसलिए की वह कमजोर या बीमार हैं या उनका अब आपके लिए कोई उपयोग नहीं बचा है? गाय भले ही बूढ़ी हो गई हो, लेकिन फिर भी उसे प्राकृतिक मृत्यु ही प्राप्त होनी चाहिए, हमें गाय की देख-रेख भी बिल्कुल वैसे ही करनी चाहिए जैसे हम अपनी मां की करते हैं। जैसे हमारी मां हमारे पैदा होने से लेकर बड़े होने तक हमारी हर जरूरत पूरी करती है ठीक वैसे ही गाय भी हमारे जन्म से लेकर अंत तक हमें बहुत कुछ ऐसा देती है हमारी जरूरतों को पूरा करती है तो हमें गाय के बूढ़े हो जाने पर यह नहीं सोचना चाहिए कि वह बूढ़ी हो गई है तो हमें उसे कसाई को सौंप देना चाहिए। बल्कि इसके बजाये हमें बूढ़ी गाये के रहने की व्यवस्था करनी चाहिए।
चरित्र हनन की साजिश
एक महिला (इसी मठ की एक भक्त) के साथ कई बार बलात्कार के आरोप में श्री रामचन्द्रपुरा मठ के शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती दो साल तक कटघरे में रहे। ये मामला काफी लंबे वक्त तक इलेक्ट्रोनिक मीडिया की सुर्खियों में रहा। मठ की रामकथा करने वाली महिला भक्त प्रेमलता दिवाकर ने मीडिया के पूछने पर बताया कि उसका साल भर में 162 बार बलात्कार किया गया और बाद में सीआईडी पुलिस को भी उसने यही बयान दिया। यह कहना गलत नहीं होगा कि यह सारी चीजें निहित स्वार्थी तत्वों द्वार सिखाई गर्ईं थी जो अपनी-अपनी जगह सुरक्षित बैठे थे। लेकिन, जो चीज सीआईडी पुलिस की जग हंसाई का कारण बनी, वह थी वह चार्ज शीट जिस पर सेशन कोर्ट में केस किया था। जो की प्रेमलता दिवाकर के बयान के अनुरूप ही थी।
हालांकि, सीआईडी पुलिस के द्वारा दायर किये गये आरोप पत्र को अदालत ने खारिज कर दिया और कहा कि केस को आगे बढ़ाने के लिए उपयुक्त सबूत नहीं हैं। जिसके बाद याचिका और आरोप पत्र खारिज कर दिये गये। इसके बाद शंकराचार्य को बड़ी राहत मिली। अदालत के इस फैसले के बाद दक्षिणी बैंगलोर के गिरीनगर मठ के सामने शंकराचार्य के हजारों भक्तों ने अपनी खुशी को जाहिर करते हुए नाचना-गाना शुरू कर दिया और जय श्री राम, जय श्री राम के नारे लगाने लगे।
शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती जो हमेशा अपनी शांति, शिष्टता, धैर्य, नम्रता और विनम्रता के लिए जाने जाते रहे हैं। अदालत द्वारा उनके खिलाफ दायर आरोप पत्र खारिज होने के बाद जब उनसे इस पर टिप्पणी करने को कहा गया तो उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया, लेकिन जोर देने पर उन्होंने कहा-जब मेरे ऊपर आरोप लगाये गये और मेरे ऊपर आरोप पत्र दाखिल किया गया तो मुझे दुख नहीं हुआ। और जब अदालत ने उपयुक्त सबूत न होने पर चार्ज शीट को खारिज कर दिया तो मुझे कोई खुशी भी नहीं हुई, क्योंकि मैं दुनिया के सुख और दुख के पक्ष से बहुत ऊपर उठ चुका हूं। मैं इस तरह की चीजों से विचलित नहीं होता। आग मुझे जला नहीं सकती और जल मुझे भिगो नहीं सकता। शरीर तो कपड़े की भांति है जो बदलता रहता है मुख्य तो आत्मा है जिसे कोई मार नहीं सकता। मैं शरीर नहीं हूं, आत्मा हूं, शरीर मरता है आत्मा तो सदैव अजर-अमर है।
उन्होंने आगे कहा कि मैं निरंतर अपनी इस यात्रा को आगे बढ़ाता रहूंगा और लोगों में देश और धर्म के प्रति जागरूकता पैदा करता रहूंगा। देश हमारे शरीर की तरह है जबकि धर्म हमारी आत्मा है। आत्मा के बिना शरीर का क्या महत्व वह बेकार है। धर्म के बिना शरीर (देश) निरार्थक है। मेरा काम सांस्कृतिक पुर्नाजागरण, नैतिक उत्थान करना है। देश की आंतरिक नब्ज को मजबूत करके समाज का फिर से अविष्कार करना है और मैं अपनी इस यात्रा को निरंतर प्रवाहित करता रहूंगा।
शंकराचार्य कहते हैं ”राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी गाय और उसके वंश के संरक्षण के पक्षधर थेÓÓ असल में उनके लिए गाय संरक्षण आजादी से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण था। उनका कहना था कि हम आजादी तो किसी भी तरह हांसिल कर ही लेंगे, लेकिन सवाल यह है कि क्या आजादी के बाद हम अपने पशु धन की रक्षा करने में सक्षम हो पायेंगे।
शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती के नेतृत्व में 31 जनवरी 2010 में एक प्रतिनिधिमंडल ने भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुलाकात की और एक ज्ञापन सौंपा जिसमें भारत के 8.50 करोड़ लोगों के हस्ताक्षर थे। इस ज्ञापन में गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए आग्रह किया गया था। प्रतिनिधिमंडल में पेशावर के शंकराचार्य, बाबा रामदेव, डॉ. एच. आर. नागेन्द्र समेत विभिन्न मठों के साधू-शंकराचार्य और सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों के नेता शामिल थे।
गौसंरक्षण के लिए ये कोई पहला अभियान नहीं था, बल्कि 1952 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के वक्त में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (एबीपीएस) ने गौरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की थी। इस तरह के अभियान लगातार लंबे वक्त से चले आ रहे हैं। हालांकि, आखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने गाय के संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार की गड़बड़ नीति पर अपनी निराश ही व्यक्त की है। गौरक्षण केवल हमारे देश के लिए एक आर्थिक सवाल ही नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक पवित्रता और राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक है।
संघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए जन अंदोलन का आह्वान शुरू किया। कई वर्षों तक देशभर में यह अभियान चलाने के परिणामस्वरूप 1965 में भारतीय जनसंघ के बैनर तले पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अन्य नेताओं के नेतृत्व में करीब 2 लाख लोगों ने गौहत्या पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाने के लिए राष्ट्रपति भवन पर दस्तक दी।
करोड़ों भारतीय की मांग को सकारात्मक दिशा देने के लिए शायद यह उचित वक्त है। अत: इस बात को ध्यान में रखते हुए शंकराचार्य श्री श्री राघवेश्वर भारती ने इस अभियान में तेजी लाने के लिए और इसके तर्किक अंत के लिए इस साल के अंतिम सप्ताह में या 2017 के शुरू में एक बार फिर से देशव्यापी दौरे पर जाने का निर्णय लिया है।
बंगलुरू से एस. ए. हेमंत कुमार
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