सरकार की सहायता से गोसदनों का विकास किया जाए
प्रारंभ से हम सभी गोशालाओं का निर्माण कर गाय सेवा, रक्षा और उससे दूध उत्पादन की ओर ध्यान देते थे और विशेष पर्वो पर उनकी पूजा करते हैं। पर आज राष्ट्र की रक्षा के लिये, गोवंश की रक्षा के लिये, गोसदन की परिकल्पना हमारे धर्माचार्यों और समाजशास्त्रियों ने की। क्योंकि गाय की रक्षा के लिये गोवंश की रक्षा भी आवश्यक है, जो गोसदनों की जा सकती है।
गाय हमारी धार्मिक संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। आज इस अंग को हमारी संस्कृति से काटने का बड़े पैमाने पर षड्यंत्र हो रहा है। परंतु वर्तमान समय में कृत्रिम साधनों और रसायनों को महत्व दिया जा रहा है जिस कारण आज विश्व के सभी देश प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं। अत: अब पर्यावरण के संरक्षण के लिए पूरी तरह से जागरूक हो रहे हैं। हमारे ऋषियों-महर्षियों द्वारा गोसेवा का दिखाया गया मार्ग मात्र कपोल कल्पित परंपरा थी बल्कि आज के वैज्ञानिक भी उस गोसेवा को स्वीकार करने लगे हैं।
संसार का पहला ज्ञानग्रंथ वेद है। ‘गावा विश्वस्य: मातर:’ कहकर उसकी महिमा गायी हुई है। मां के बाद किसी दूध की महिमा है, तो वह गाय का ही दूध है। गाय सभी को पोषण देती है, किसी को विकृति नहीं देती। जो समाज गाय का सम्मान नहीं कर पाए, वह कृतध्नी है अत: उसकी (गोवंश) रक्षा, पोषण-संवर्धन करना हमारा उपकार नहीं, नैतिक कर्तव्य है। अत: दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा और गोपाष्टमी 16 नवम्बर 2018 को हमें गऊमाता की पूजा और अर्चना कर गौरक्षण और गोवंश संवद्र्धन का संकल्प लेना चाहिये।
गोवंश संरक्षण का न केवल एक धार्मिक पक्ष है, बल्कि यह आर्थिक, सामाजिक कारणों से भी लाभदायक है और हमें इसकी रक्षा के लिए सर्तक हो जाना चाहिए गोधन कृषि प्रधान भारतीय अर्थव्यवस्था का मूलधार है और इसकी उपयोगिता बहुआयामी है इससे हम स्वावलंबी बन सकते हैं। चौरासी लाख योनियों के प्राणियों में गाय ही एक ऐसा प्राणी है, जिसका मल (गोबर) रोगाणुनाशक व विषाणुनाशक है। इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. जी. ई. बीगेड ने गोबर के अनेक प्रयोग कर यह सिद्ध कर दिया है कि गाय के ताजे गोबर से तपेदिक तथा मलेरिया के रोगाणु मर जाते हैं। अमेरिका के वैज्ञानिक जेम्स मार्टिन ने गाय के गोबर खमीर और समूद्र के पानी को मिलाकर एक ऐसा उत्प्रेरक बनाया है, जिसके प्रयोग से बंजर भूमि हरी-भरी हो जाती है। गोसदन हरेवली की आज हरी-भरी भूमि इसका उदाहरण है।
पुराणों धर्म ग्रंथों में गाय की महिमा गायी है। गंगा, गीता, गोमाता तीनों को मुक्ति दायिनी माना गया है। प्रत्येक भारतीय का विश्वास है हमारे कृषि पर निर्भर है। पर आज हम विदेशी कम्पनीयों और प्रचार के माध्यमों में गाय की उपयोगिता को भूलकर कृत्रिम खादों और रसायनों पर निर्भर हो रहे हैं। आज वही बेचारी गाय दिल्ली की सड़को पर गली-सड़ी वस्तुएं और पोलीथिन को खाकर अपना पेट भर रही है और अनेक बीमारियों का शिकार बन रही है और उनके गोपालक मालिक उनका शोषण कर रहे हैं। वृद्ध होने पर छोड़ देते हैं जिनकी रक्षा गोसदनों में होगी जहां वे अपने गोबर, गोमूत्र से गोसदनों को समृद्धिशाली बना सकती हैं। हम भी गोबर गैस और केंचुआ खाद बना रहे हैं।
आजकल अनेकों गोसदन मानव जीवन को स्वस्थ रखने हेतु गोमूत्र में जड़ी-बूटियां व अनेक धातुओं की भस्में मिलाकर अनेकों औषधियों का निर्माण कर उनकी बिक्री से आमदनी कर रही हैं परंतु शुद्ध गोमूत्र व जड़ी-बूटियों तथा योग्य चिकित्सों के अभाव से तैयार इन औषधियों से कुछ रोगों में मामूली लाभ तो मिला है परंतु वास्तविक लाभ नहीं मिल पा रहा है। जिसके लिये सरकार को गोवंश उत्थान अनुसंधान केंद्र बनाने चाहिए। आज सभी जीव-जंतुओं के लिए अनुसंधान केंद्र हैं पर गाय के लिये नहीं है।
गोबर-गोमूत्र से खेती के लिये जैविक खाद व कीटनाशक औषधियां बनाई जायें जिनका उपयोग खेती में करने पर भूमि, जल व वायु शुद्ध होगी, फसलों से उत्पादित अन्न, फल, साग-सब्जियां शुद्ध, पौष्टिक होंगी। सभी नागरिकों को शुद्ध पौष्टिक आहार मिलेगा जिस कारण वे नीरोगी जीवन जी सकेंगे।
गोसदन के गोबर-गोमूत्र का पूरा उपयोग होने पर उसकी बिक्री से गोसदनो की आमदनी बढ़ेगी एवं सभी तरह के गोवंश का पालन तथा रक्षण व संर्वधन भी होगा गोसदनो से ग्रामीण जनता खुशहाल व आत्मनिर्भर भी हो सकेंगी। महंगी जहरीली औषधियों की निर्भरता घटेगी।
गो-पालन एवं गौवंश संवर्धन भारत के लिए समृद्धि का सूचक है। गोवंश की रक्षा, सेवा एवं उपयोगिता के लिये हमें एक सामूहिक दृष्टि पैदा करनी होगी। संयुक्त रूप से हमें गोवंश को देश, समाज एवं हर परिवार के साथ जोडऩा है इसके लिए हम गोसदनों का निर्माण करे, जहां पंचगव्य से हम कुछ निर्माण कर गोसदनों को स्वावलंबी बनाएं। गाय की सुरक्षा संवृद्धि के लिए संगठित प्रयास करें। आईए, आज से ही इस महान यज्ञ में अपनी आहुति डालने के लिए तैयार हों एवं समाज के लोगों को भी इस महान कार्य के लिए जाग्रत कर प्रेरित करें जिससे भारत राष्ट्र स्वावलंबी, संपन्न एवं समृद्धिशाली बने और हम पुण्य के भागीदारी बन सके।
महेश चन्द्र शर्मा
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